गेहूं और गुलाब : रामवृक्ष बेनीपुरी
निबंध
गेहूं और गुलाब : रामवृक्ष बेनीपुरी
गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्त होता है।
गेहूँ बड़ा या गुलाब? हम क्या चाहते हैं – पुष्ट शरीर या तृप्त मानस? या पुष्ट शरीर पर तृप्त मानस?
जब मानव पृथ्वी पर आया, भूख लेकर। क्षुधा, क्षुधा, पिपासा, पिपासा। क्या खाए, क्या पिए?
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