Shekhar upnyas/ shekhar ek jeevani upanyas शेखर : एक जीवनी उपन्यास
शेखर : एक जीवनी उपन्यास – अज्ञेय की समीक्षा और पात्र
उपन्यास समीक्षा
शेखर : एक जीवनी उपन्यास अज्ञेय की बहुचर्चित मनोवैज्ञानिक उपन्यास है।
यह उपन्यास दो भागों में विभक्त है – उत्थान और उत्कर्ष ।
पहला भाग 1940 और दूसरा भाग
1944 में प्रकाशित हुआ।उपन्यास के प्रथम भाग को चार खण्डों में बाँटा गया है – 1.उषा और ईश्वर, 2.बीज और अंकुर, 3.प्रकृति और पुरुष तथा 4.पुरुष और परिस्थिति।
उपन्यास के दूसरे भाग को भी चार खण्डों में बाँटा गया है – 1. पुरुष और परिस्थिति, 2. बंधन और जिज्ञासा, 3. शशि और शेखर तथा 4. धागे, रस्सियाँ, गुंझर हैं।
उपन्यास का आरंभ ईश्वर को लेकर प्रश्नाकुलता तथा समापन उलझन और द्वंद में हुआ है।
इसे जीवनी प्रधान मनोवैज्ञानिक उपन्यास कहना अधिक उचित होगा।
ईश्वर के प्रति अनास्था, भयभीत करने वाली वस्तुओं को देख घबराना, ईश्वर के अस्तित्व पर घर वालों से सवाल करना, मॉं के प्रति घृणा तथा घटनाओं का वर्णन किया गया है।
लेखक परिचय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार है।
इन्हें कवि, ललित निबंधकार, संपादक तथा सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है।
इन्होंने हिंदी की कथा साहित्य को एक महत्वपूर्ण आयाम दिया।
इन्होंने मनोवैज्ञानिक उपन्यासों के क्षेत्र में एक अनूठा कार्य किया।
पात्र
शेखर – मुख्य पात्र, जो कि शेखर : एक जीवनी उपन्यास का केंद्रबिंदु है।
इसका स्वभाव विद्रोही है।
बंधन से घृणा करता है और बन्धन मुक्त रहना चाहता है।
सरस्वती – शेखर की बहन। जो कि शेखर की प्रेरक एवं गुरु भी है।
शारदा – मद्रासी परिवार की लड़की है, स्वभाव चंचल तथा स्पष्ठवादिता।
शेखर इसकी ओर आकर्षित होता है।
शशि – शेखर की मौसेरी बहन। इसके प्रति भी शेखर आकर्षित होता है।
संघर्ष का सामना करने वाली नारी है।
अतिरिक्त पात्र – शेखर की माँ, माणिका तथा शांति।
शेखर : एक जीवनी उपन्यास की समीक्षा
शेखर : एक जीवनी उपन्यास में पूर्वदीप्ति (फ़्लैश बैक) पद्धति को अपनाया गया है।
यह उपन्यास की कथा शेखर की मनःस्थिति के अनुसार चलती है।
शेखर जन्मजात विद्रोही स्वभाव का था। समाज में व्याप्त रूढ़िगत मान्यताओं और परंपराओं के प्रति है।
समाज के नियमों के कारण अपने आप को बंधन में नहीं रखना चाहता।
शेखर को ईमानदार एवं जिज्ञासु व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है ।
उसमें अहं भाव की प्रबलता है तथा उसका व्यक्तित्व काम भावना से परिचालित है।
एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में रहना चाहता है, अपने मन में उठे सवालों के जवाब चाहता है तथा प्रेंम चाहता है।
उपन्यास में घटनाओं की अधिकता होने के बावजूद शेखर का व्यक्तित्व स्थिर रहता है।
अज्ञेय ने शेखर की गूढ़तम प्रवृत्तियों को चित्रित करने के लिए सूक्ष्म और कलात्मक प्रयोग किया है।
शेखर के पात्र को फांसी जैसी विकट परिस्थितियों में अतीत के जीवन को जीने की प्रेरणा देकर उसे सफल बना दिया है।
शेखर के स्वप्न के द्वारा उसके भूतकाल के जीवन, वर्तमान जीवन तथा भविष्य के जीवन की दिशा को समझाया है।
इस स्वप्न के माध्यम ही पाठक शेखर के समस्त जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करता है।
उस समय की राजनीतिक गतिविधियों और सामाजिक यथार्थ के माध्यम से स्वतंत्रता एवं क्रांति की सोच पर भी विचार किया है।
स्वाधीनता के पूर्व की परिस्थितियों का भी परिचय किया गया है।
उपन्यास में मृत्यु, अहिंसा, स्वतंत्रता, प्रेम आदि पर विचार व्यक्त किया गया है।
सम्पूर्ण उपन्यास में शेखर के जीवन की सारी समस्याओं को सुलझाया गया है।
अहंभाव, भय तथा नारी-पुरुष से जुड़ी काम वर्जनाओं को बेहद सटीकता से पिरोया गया है।
शिल्पगत विशेषता
अज्ञेय ने बिम्ब और प्रतीकों का उपयोग इसमें मिलता है।
काव्य भाषा भी प्रयुक्त हुई है। अलंकारों का भी उपयोग हुआ है।
कथा के अंत में प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है।
शेखर : एक जीवनी उपन्यास ऐसा मनोवैज्ञानिक उपन्यास है, जो हिंदी उपन्यासों को नई दिशा और नए उपन्यासकारों को प्रेरणा प्रदान करता है।
लेबल: उपन्यास, UGC NET JRF, unit vi
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