वो प्रेम नहीं, प्रेम की नौकरी करता है।
भीष्म सा विवश वह नित युद्ध करता है।
परिणाम पर न अनुरूप पाकर
देख सब कुछ अपनाकर,
तज कर अपनो को फिर
सपनो को स जा क र
करेगा मन की - विचार ये तजता है,
अरे! ऐसे कौन पलटता है?
शाम ढले वो सो गया
दिन चढ़े जागा,
मुर्दा सा
जीवन की दौड़ में वो भागा।
मशीनी इस दुनिया में
मशीन बने वो फिरता है।
लेबल: कविता, हिंदी शिक्षार्थी
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