सोमवार, 14 अप्रैल 2025

इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर : हरिशंकर परसाई

 वैज्ञानिक कहते हैं, चाँद पर जीवन नहीं है।

सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम. डी. साब) कहते हैं—वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है।


विज्ञान ने हमेशा

इंस्पेक्टर मातादीन से मात खाई है। फ़िंगर प्रिंट विशेषज्ञ कहता रहता है—छुरे पर पाए गए निशान मुलजिम की अँगुलियों के नहीं हैं। पर मातादीन उसे सज़ा दिला ही देते हैं।

मातादीन कहते हैं ये वैज्ञानिक केस का पूरा इंवेस्टिगेशन नहीं करते। उन्होंने चाँद का उजला हिस्सा देखा और कह दिया, वहाँ जीवन नहीं है। मैं चाँद का अँधेरा हिस्सा देखकर आया हूँ। वहाँ मनुष्य जाति है।


यह बात सही है क्योंकि अँधेरे पक्ष के मातादीन माहिर माने जाते हैं।

पूछा जाएगा, इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर क्यों गए थे? टूरिस्ट की हैसियत से या किसी फ़रार अपराधी को पकड़ने? नहीं, वे भारत की तरफ़ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत गए थे। चाँद सरकार ने भारत सरकार को लिखा था—यों हमारी सभ्यता बहुत आगे बढ़ी है। पर हमारी पुलिस में पर्याप्त सक्षमता नहीं है। वह अपराधी का पता लगाने और उसे सज़ा दिलाने में अक्सर सफल नहीं होती। सुना है आपके यहाँ रामराज है। मेहरबानी करके किसी पुलिस अफ़सर को भेजें जो हमारी पुलिस को शिक्षित कर दे।


गृहमंत्री ने सचिव से कहा—किसी आई. जी. को भेज दो।

सचिव ने कहा—नहीं सर, आई. जी. नहीं भेजा जा सकता। प्रोटोकॉल का सवाल है। चाँद हमारा एक क्षुद्र उपग्रह है। आई. जी. के रैंक के आदमी को नहीं भेजेंगे। किसी सीनियर इंस्पेक्टर को भेज देता हूँ।


तय किया गया कि हज़ारों मामलों के इंवेस्टिगेटिंग ऑफ़िसर सीनियर इंस्पेक्टर मातादीन को भेज दिया जाए।

चाँद की सरकार को लिख दिया गया कि आप मातादीन को लेने के लिए पृथ्वी-यान भेज दीजिए।


पुलिस मंत्री ने मातादीन को बुलाकर कहा—तुम भारतीय पुलिस की उज्ज्वल परंपरा के दूत की हैसियत से जा रहे हो। ऐसा काम करना कि सारे अंतरिक्ष में डिपार्टमेंट की ऐसी जय जयकार हो कि पी. एम. (प्रधानमंत्री) को भी सुनाई पड़ जाए।

मातादीन की यात्रा का दिन आ गया। एक यान अंतरिक्ष अड्डे पर उतरा। मातादीन सबसे विदा लेकर यान की तरफ़ बढ़े। वे धीरे-धीरे कहते जा रहे थे, ‘प्रविसि नगर कीजै सब काजा, हृदय राखि कौसलपुर राजा।’


यान के पास पहुँचकर मातादीन ने मुंशी अब्दुल गफ़ूर को पुकारा—‘मुंशी!’

गफ़ूर ने एड़ी मिलाकर सेल्यूट फटकारा। बोला—जी, पेक्टसा!


एफ़. आई. आर. रख दी है!

जी, पेक्टसा।


और रोज़नामचे का नमूना?

जी, पेक्टसा!


वे यान में बैठने लगे। हवलदार बलभद्दर को बुलाकर कहा—हमारे घर में जचकी के बखत अपने खटला (पत्नी) को मदद के लिए भेज देना।

बलभद्दर ने कहा—जी, पेक्टसा।


गफ़ूर ने कहा—आप बेफ़िक्र रहे पेक्टसा! मैं अपने मकान (पत्नी) को भी भेज दूँगा खिदमत के लिए।

मातादीन ने यान के चालक से पूछा—ड्राइविंग लाइसेंस है?

जी, है साहब!


और गाड़ी में बत्ती ठीक है?

जी, ठीक है।


मातादीन ने कहा, सब ठीक-ठाक होना चाहिए, वरना हरामज़ादे का बीच अंतरिक्ष में, चालान कर दूँगा।

चंद्रमा से आए चालक ने कहा—हमारे यहाँ आदमी से इस तरह नहीं बोलते।


मातादीन ने कहा—जानता हूँ बे! तुम्हारी पुलिस कमज़ोर है। अभी मैं उसे ठीक करता हूँ।

मातादीन यान में क़दम रख ही रहे थे कि हवलदार रामसजीवन भागता हुआ आया। बोला— पेक्टसा, एस.पी. साहब के घर में से कहे हैं कि चाँद से एड़ी चमकाने का पत्थर लेते आना।


मातादीन ख़ुश हुए। बोले—कह देना बाई साहब से, ज़रूर लेता आऊँगा।

वे यान में बैठे और यान उड़ चला। पृथ्वी के वायुमंडल से यान बाहर निकला ही था कि मातादीन ने चालक से कहा—अबे, हान क्यों नहीं बजाता?


चालक ने जवाब दिया—आसपास लाखों मील में कुछ नहीं है।

मातादीन ने डाँटा—मगर रूल इज़ रूल। हान बजाता चल।


चालक अंतरिक्ष में हान बजाता हुआ यान को चाँद पर उतार लाया। अंतरिक्ष अड्डे पर पुलिस अधिकारी मातादीन के स्वागत के लिए खड़े थे। मातादीन रोब से उतरे और उन अफ़सरों के कंधों पर नज़र डाली। वहाँ किसी के स्टार नहीं थे। फ़ीते भी किसी के नहीं लगे थे। लिहाज़ा मातादीन ने एड़ी मिलाना और हाथ उठाना ज़रूरी नहीं समझा। फिर उन्होंने सोचा, मैं यहाँ इंस्पेक्टर की हैसियत से नहीं, सलाहकार की हैसियत से आया हूँ।

मातादीन को वे लोग लाइन में ले गए और एक अच्छे बंगले में उन्हें टिका दिया।


एक दिन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शुरू कर दिया। पहले उन्होंने पुलिस लाइन का मुलाहज़ा किया।

शाम को उन्होंने आई.जी. से कहा—आपके यहाँ पुलिस लाइन में हनुमानजी का मंदिर नहीं है। हमारे रामराज में पुलिस लाइन में हनुमानजी हैं।


आई.जी. ने कहा—हनुमान कौन थे—हम नहीं जानते।

मातादीन ने कहा—हनुमान का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसवाले के लिए ज़रूरी है। हनुमान सुग्रीव के यहाँ स्पेशल ब्रांच में थे। उन्होंने सीता माता का पता लगाया था। ’एबडक्शन’ का मामला था—दफ़ा 362। हनुमानजी ने रावण को सज़ा वहीं दे दी। उसकी प्रॉपर्टी में आग लगा दी। पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि अपराधी को पकड़ा और वहीं सज़ा दे दी। अदालत में जाने का झंझट नहीं। मगर यह सिस्टम अभी हमारे रामराज में भी चालू नहीं हुआ है। हनुमानजी के काम से भगवान राम बहुत ख़ुश हुए। वे उन्हें अयोध्या ले आए और ‘टौन ड्यूटी’ में तैनात कर दिया। वही हनुमान हमारे अराध्य देव हैं। मैं उनकी फ़ोटो लेता आया हूँ।


उस पर से मूर्तियाँ बनवाइए और हर पुलिस लाइन में स्थापित करवाइए।

थोड़े ही दिनों में चाँद की हर पुलिस लाइन में हनुमानजी स्थापित हो गए।


मातादीन उन कारणों का अध्ययन कर रहे थे, जिनसे पुलिस लापरवाह और अलाल हो गई है। वह अपराधों पर ध्यान नहीं देती। कोई कारण नहीं मिल रहा था। एकाएक उनकी बुद्धि में एक चमक आई। उन्होंने मुंशी से कहा—ज़रा तनख़ा का रजिस्टर बताओ।

तनख़ा का रजिस्टर देखा, तो सब समझ गए। कारण पकड़ में आ गया।


शाम को उन्होंने पुलिस मंत्री से कहा, मैं समझ गया कि आपकी पुलिस मुस्तैद क्यों नहीं है। आप इतनी बड़ी तनख़्वाहें देते हैं, इसीलिए। सिपाही को पाँच सौ, हवलदार को सात सौ थानेदार को हज़ार—ये क्या मज़ाक है। आख़िर पुलिस अपराधी को क्यों पकड़े? हमारे यहाँ सिपाही को सौ और इंस्पेक्टर को दो सौ देते हैं तो वे चौबीस घंटे जुर्म की तलाश करते हैं। आप तनख़्वाहें फ़ौरन घटाइए।

पुलिस मंत्री ने कहा—मगर यह तो अन्याय होगा। अच्छा वेतन नहीं मिलेगा तो वे काम ही क्यों करेंगे?


मातादीन ने कहा—इसमें कोई अन्याय नहीं है। आप देखेंगे कि पहली घटी हुई तनख़ा मिलते ही आपकी पुलिस की मनोवृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएगा।

पुलिस मंत्री ने तनख़्वाहें घटा दीं और 2-3 महीनों में सचमुच बहुत फ़र्क़ आ गया। पुलिस एकदम मुस्तैद हो गई। सोते से एकदम जाग गई। चारों तरफ़ नज़र रखने लगी। अपराधियों की दुनिया में घबड़ाहट छा गई। पुलिस मंत्री ने तमाम थानों के रिकॉर्ड बुला कर देखे। पहले से कई गुने अधिक केस रजिस्टर हुए थे। उन्होंने मातादीन से कहा—मैं आपकी सूझ की तारीफ़ करता हूँ। आपने क्रांति कर दी। पर यह हुआ किस तरह?


मातादीन ने समझाया—बात बहुत मामूली है। कम तनख़ा दोगे, तो मुलाज़िम की गुज़र नहीं होगी। सौ रुपयों में सिपाही बच्चों को नहीं पाल सकता। दो सौ में इंस्पेक्टर ठाठ-बाट नहीं मेनटेन कर सकता। उसे ऊपरी आमदनी करनी ही पड़ेगी। और ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकड़ेगा। गरज़ कि वह अपराधों पर नज़र रखेगा। सचेत, कर्तव्यपरायण और मुस्तैद हो जाएगा। हमारे रामराज के स्वच्छ और सक्षम प्रशासन का यही रहस्य है।

चंद्रलोक में इस चमत्कार की ख़बर फैल गई। लोग मातादीन को देखने आने लगे कि वह आदमी कैसा है जो तनख़ा कम करके सक्षमता ला देता है। पुलिस के लोग भी ख़ुश थे। वे कहते—गुरु, आप इधर न पधारते तो हम सभी कोरी तनख़ा से ही गुज़र करते रहते। सरकार भी ख़ुश थी कि मुनाफ़े का बजट बनने वाला था।


आधी समस्या हल हो गई। पुलिस अपराधी पकड़ने लगी थी। अब मामले की जाँच-विधि में सुधार करना रह गया था। अपराधी को पकड़ने के बाद उसे सज़ा दिलाना। मातादीन इंतज़ार कर रहे थे कि कोई बड़ा केस हो जाए तो नमूने के तौर पर उसका इंवेन्स्टिगेशन कर बताए।

एक दिन आपसी मारपीट में एक आदमी मारा गया। मातादीन कोतवाली में आकर बैठ गए और बोले—नमूने के लिए इस केस का ‘इंवेस्टिगेशन’ मैं करता हूँ। आप लोग सीखिए। यह क़त्ल का केस है। क़त्ल के केस में ‘एविडेंस’ बहुत पक्का होना चाहिए।


कोतवाल ने कहा—पहले क़ातिल का पता लगाया जाएगा, तभी तो एविडेंस इकठ्ठा किया जाएगा।

मातादीन ने कहा—नहीं, उलटे मत चलो। पहले एविडेंस देखो। क्या कहीं ख़ून मिला? किसी के कपड़ों पर या और कहीं?


एक इंस्पेक्टर ने कहा—हाँ, मारने वाले तो भाग गए थे। मृतक सड़क पर बेहोश पड़ा था। एक भला आदमी वहाँ रहता है। उसने उठाकर अस्पताल भेजा। उस भले आदमी के कपड़ों पर ख़ून के दाग़ लग गए हैं।

मातादीन ने कहा—उसे फ़ौरन गिरफ़्तार करो।


कोतवाल ने कहा—मगर उसने तो मरते हुए आदमी की मदद की थी।

कोतवाल ने कहा—मगर उसने तो मरते हुए आदमी की मदद की थी।

मातादीन ने कहा—वह सब ठीक है। पर तुम ख़ून के दाग़ ढूँढ़ने और कहाँ जाओगे? जो एविडेंस मिल रहा है, उसे तो क़ब्ज़े में करो।


वह भला आदमी पकड़कर बुलवा लिया गया। उसने कहा—मैंने तो मरते आदमी को अस्पताल भिजवाया था। मेरा क्या क़सूर है?

चाँद की पुलिस उसकी बात से एकदम प्रभावित हुई। मातादीन प्रभावित नहीं हुए। सारा पुलिस महकमा उत्सुक था कि अब मातादीन क्या तर्क निकालते हैं।


मातादीन ने उससे कहा—पर तुम झगड़े की जगह गए क्यों?

उसने जवाब दिया—मैं झगड़े की जगह नहीं गया। मेरा वहाँ मकान है। झगड़ा मेरे मकान के सामने हुआ।


अब फिर मातादीन की प्रतिभा की परीक्षा थी। सारा मुहकमा उत्सुक देख रहा था।

मातादीन ने कहा—मकान तो ठीक है। पर मैं पूछता हूँ, झगड़े की जगह जाना ही क्यों?


इस तर्क का कोई जवाब नहीं था। वह बार-बार कहता—मैं झगड़े की जगह नहीं गया। मेरा वहीं मकान है।

मातादीन उसे जवाब देते—सो ठीक है, पर झगड़े की जगह जाना ही क्यों? इस तर्क-प्रणाली से पुलिस के लोग बहुत प्रभावित हुए।


अब मातादीनजी ने इंवेस्टिगेशन का सिद्धांत समझाया—

देखो, आदमी मारा गया है, तो यह पक्का है किसी ने उसे ज़रूर मारा। कोई क़ातिल है। किसी को सज़ा होनी है। सवाल है—किसको सज़ा होनी है? पुलिस के लिए यह सवाल इतना महत्त्व नहीं रखता जितना यह सवाल कि जुर्म किस पर साबित हो सकता है या किस पर साबित होना चाहिए। क़त्ल हुआ है, तो किसी मनुष्य को सज़ा होगी ही। मारनेवाले को होती है, या बेक़सूर को—यह अपने सोचने की बात नहीं है। मनुष्य-मनुष्य सब बराबर हैं। सबमें उसी परमात्मा का अंश है। हम भेदभाव नहीं करते। यह पुलिस का मानवतावाद है।


दूसरा सवाल है, किस पर जुर्म साबित होना चाहिए। इसका निर्णय इन बातों से होगा—(1) क्या वह आदमी पुलिस के रास्ते में आता है? (2) क्या उसे सज़ा दिलाने से ऊपर के लोग ख़ुश होंगे?

मातादीन को बताया गया कि वह आदमी भला है, पर पुलिस अन्याय करे तो विरोध करता है। जहाँ तक ऊपर के लोगों का सवाल है—वह वर्तमान सरकार की विरोधी राजनीति वाला है।


मातादीन ने टेबिल ठोंककर कहा—फ़र्स्ट क्लास केस। पक्का एविडेंस। और ऊपर का सपोट।

एक इंस्पेक्टर ने कहा—पर हमारे गले यह बात नहीं उतरती है कि एक निरपराध-भले आदमी को सज़ा दिलाई जाए।


मातादीन ने समझाया—देखो, मैं समझा चुका हूँ कि सबमें उसी ईश्वर का अंश है। सज़ा इसे हो या क़ातिल को, फाँसी पर तो ईश्वर ही चढ़ेगा न! फिर तुम्हे कपड़ों पर ख़ून मिल रहा है। इसे छोड़कर तुम कहाँ ख़ून ढूँढ़ते फिरोगे? तुम तो भरो एफ. आई. आर.।

मातादीन जी ने एफ.आई.आर. भरवा दी। ‘बखत ज़रूरत के लिए’ जगह ख़ाली छुड़वा दी।


दूसरे दिन पुलिस कोतवाल ने कहा—गुरुदेव, हमारी तो बड़ी आफ़त है। तमाम भले आदमी आते हैं और कहते हैं, उस बेचारे बेक़सूर को क्यों फँसा रहे हो? ऐसा तो चंद्रलोक में कभी नहीं हुआ! बताइए हम क्या जवाब दें? हम तो बहुत शर्मिंदा हैं।

मातादीन ने कोतवाल से कहा—घबड़ाओ मत। शुरू-शुरू में इस काम में आदमी को शर्म आती है। आगे तुम्हें बेक़सूर को छोड़ने में शर्म आएगी। हर चीज़ का जवाब है। अब आपके पास जो आए उससे कह दो, हम जानते हैं वह निर्दोष है, पर हम क्या करें? यह सब ऊपर से हो रहा है।


कोतवाल ने कहा—तब वे एस.पी. के पास जाएँगे।

मातादीन बोले—एस.पी. भी कह दें कि ऊपर से हो रहा है।


तब वे आई.जी. के पास शिकायत करेंगे।

आई.जी. भी कहें कि सब ऊपर से हो रहा है।


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